“आजकल के युवाओं को राजनीति से नफरत है, लेकिन राजनीति ही किसी देश का भविष्य तय करती है-चाणक्य| क्या यह पूर्णतया: सच हैं? सच ही होगा, आखिर चाणक्य जैसा इतना बड़ा विद्वान् गलत कैसे कह सकता हैं| सिर्फ चाणक्य ही नहीं बहुतो के मुंह से आपने यह सुना होगा| इसका सीधा तात्पर्य यह हुआ की देश का भविष्य इसलिए अँधेरे की और बढ़ रहा है क्यूंकि कोई भी युवा राजनीति में दिलचस्पी नही दिखा रहा और कोई दिखा भी रहा हैं तो सिर्फ कॉलेज-यूनिवर्सिटी चुनाव तक, फिर हर कोई यहीं कहता हैं की राजनीति एक गन्दा कीचड़ हैं, भाई पैर मत घुसैयो| 
        कोई डॉक्टर बनना चाहता हैं, कोई इंजीनियर, कोई शिशक, पर जब बात राजनीति की आए सब युवा पीछे हट जाते है| वर्तमान में ८५-९०% से ज्यादा नेता सीनियर सिटीजन की टिकट के साथ देश की गाड़ी चला रहे हैं| आखिर क्यूँ? चाणक्य की बात पर तो हर कोई अमल कर लेता हैं, पर बेवजह युवाओं को कठगरे में खड़ा करना भी कहाँ तक जायज हैं? मैं आपको अपनी एक छोटी सी घटना सुनाता हूँ, फिर शायद आप युवाओं पे दोष मढने से पीछे हटे| 
         मैं हर रोज की तरह उस दिन भी जोधपुर की रेलवे कॉलोनी के हनुमान मंदिर जा रहा था| मेरी नजरे सामने कम, अपने मोबाइल में ज्यादा थी, जो आज के हर नौजवान में यह खूबी
देखी जा सकती हैं| मैं एक अखबार की वेबसाइट पर आने वाले विधानसभा चुनाव के गलियारों की खबरे पढ़ रह था| सड़क पार करने के बाद मंदिर के रास्ते पे हर रोज़ मेरी मुलाक़ात ४-५ कुत्तो से हुआ करती थी| वो मुझे शक भरी निगाहों से देखते रहते की, आखिर यह मनुष्य हाथ में किस तरह की हड्डी का टुकड़ा देखे जा रहा हैं| उस दिन भी मेरी निगाहें मोबाइल पर ही थी की, अचानक उन कुत्तो ने मुझ पर भौंकना शुरू कर दिया| सहमी हुयी निगाहें उठाकर मैंने उनकी तरफ देखा तो, सभी ने मेरा रास्ता रोक रखा था| वो मुझे देखकर भौंके जा रहे थे, और मैं बस यहीं सोच रहा था कि आज इनको अचानक क्या हो गया| मेरी नजर अपने मोबाइल पर पड़ी, तो धीरे-धीरे मैंने उसे जेब रखा| मैंने सहमे हुए से अपने कदम थोड़े आगे बढ़ाये ही थे की, एक मेरी और बढने लगा| जैसे ही मैंने अपने कदम रोके, वो भी रुक गया, लेकिन उनका भौंकना अभी भी जारी था| अगली बार फिर जैसे ही मैंने अपने कदम आगे बढाए, तो एक मेरी लपका और मैंने जैसे-तैसे अपने आप को संभालता हुआ वहाँ से भागा| काफी देर तक वो मेरा पीछा करते रहे, लेकिन उनका क्षेत्र ख़त्म होते ही वो उल्टे पाँव वापस लौट गये|
             अपने रूम पर आकर मैंने चैन की सांस ली, कुछ समझ में नही आ रहा था की आखिर आज उन कुत्तो को हुआ क्या है? पलंग पर बैठा मैं हांफ रहा था, चेहरा पसीने में डूबा हुआ सा लग रहा था| मैंने अपने जेब से रुमाल निकलकर पसीना पोंछते हुए शीशे में देखा तो अगले ही पल मुझे सारा माझरा समझ में आया| गलती मेरी थी उस बेजुबान की नहीं, दरअसल मैंने सफ़ेद कुरता-पायजामा पहन रखा था और सीर पे सफ़ेद टोपी लगा रखी थी| यह हैं अपने देश की हालत, एक बेजुबान जानवर भी अब समझने लग गया की एक सफ़ेद कुर्ते-पायजामा पहने व टोपी लगाए एक चोर हर पांच साल में अपनी गली में आता है और हाथ जोड़कर, रोते, बिखलाते हुए अगले पांच साल तक चोरी करने की अनुमति ले जाता हैं| 
             जब एक बेजुबान जानवर यह बात समझ सकता हैं तो हम समझदार भारतीय तो उस नेता से जुडी राजनीति से भलीभांति परिचित हैं, फिर सिर्फ युवाओं पर देश के भविष्य से खिलवाड़ का आरोप तो सरासर गलत हैं| अगर आरोप लगाना ही हैं तो १०० करोड़ से भी ज्यादा भारतीयों पर लगाइए, क्यूंकि हमने ही तो उन्हें चोरी करने की अनुमति दी हैं, हमने ही तो चुना है उनको| कोई भी चीज़ अगर बेहतर होगी तो लोग उसकी तरफ खींचे चले आयेगें| अब अपने देश की राजनीति ही बेहतर नहीं रही तो नफरत होना स्वाभाविक हैं, लेकिन इसे बेहतर बनाया जा सकता हैं| 
               हर रोज चौपाल पर बैठे-बैठे एक ही रट लगाते रहते हैं की देश की राजनीति बेकार हो गयी हैं, तो जाइए अपना मत सही इन्सान को दीजिये और अगर इतनी ही इस देश की चिंता हैं तो राजनीति के अखाड़े में दो-दो हाथ कीजिये| अखाड़े में दो-दो हाथ की बात आ जाए तो आप सभी का एक ही जवाब होगा, राजनीति हमारे बस की चीज़ कहाँ, तो इस बारे में मेरी एक ही राय हैं की जो लोग देश चला रहे हैं अब राजनीति उनके बस की चीज़ भी नहीं रही, क्यूंकि अगर उनके बस में होती ना तो भारत देश को फिर से विश्व-गुरु का दर्ज़ा मिल गया होता| वो कहते हैं ना की डुबते को तिनके का सहारा काफी हैं, जब बड़ी-बड़ी टहनियाँ भी इस देश को डूबने से नही बचाना चाहती, तो हम जैसे तिनके अगर देश सेवा में आगे आ जाये तो क्या गलत हैं| यह देश सिर्फ युवाओं के भरोसे ही नहीं चल सकता,  हर एक को चौपाल छोडकर आगे आना होगा, तभी एक नई शुरुआत हो सकती हैं| अंत: मेरी एक कविता की चंद पंक्तिया:
एक नहीं,
अनेको की जरूरत हैं,
कुछ बदलने के लिए,
हर एक के सहारे की जरूरत हैं,
हम भले ही हैं खोटे सिक्के,
पर खनक सोने सी हैं,
सोना के खरीददार,
हर एक बाजार में हैं,
खोटे से सोना खरीदे,
तो बात कुछ अलग हैं....