यह कैसा मुल्क है अपना....
जहाँ गरीब रोटी को रोता...
अमीर रोता मनी को...
जनता चाहती विकास को...
तो सरकार दिखाती विकास दर को...

यह कैसा मुल्क है अपना....
जहाँ वोट बैंक के खातिर....
हिन्दु आतंकवाद नजर आता हैं....
99 पैसे जनता तक पहुँचा कर भी....

1 पैसा खाने का मोह न छुटता हैं....

यह कैसा मुल्क है अपना....
जहाँ किसान की आत्महत्या पे अफसोस नहीं...
एक आतंकी को मिस्टर पुकारते हैं....
महिला शोषण का कोई हल नहीं....
पर आतंकवाद का सफाया चाहते हैं....

यह कैसा मुल्क है अपना....
जहाँ वर्ल्डकप जीतने के स्वागत में..
भगतसिंह का जन्मदिन भुल जाते हैं...
दुश्मन की सीनाजोरी के आगे..
हम बस चिट्ठी लिखते रह जाते हैं...

ऐसा अपना मुल्क हैं यारो....
सोने की चिडिया को लुट कर....
घोसले तक को नहीं बख्सा हैं...
युवाओ की फौज हैं घर बैठी....
देश चला रहे वो बुढ्ढे हाथी हैं...