सुना था बचपन में..
मेरा देश हैं अन्नदाता..
यकीन तब हुआ..
जब गोदामो में अन्न..
सडकर बर्बाद हुआ..
कुछ फर्क न पडा..
इन सफेद कुर्ते वालो को..
पर एक किसान की..
मेहनत का तो मजाक बना..

संसद में मिलता हैं..
सस्ता खाना..
पर भूखा सोता..
मैं गरीब किसान रे..
अपने बच्चो की शादी में..
नेताजी करोडो उडाते..
मेरे भी छोटे-छोटे..
बच्चे हैं साहिब..
अगले माह हैं..
मोरे बीटिया की शादी..
पर दहेज मांग रे..
लडके वाले जनाब रे..


कर्ज मे डूबा मैं गरीब किसान..
कह रहा हूँ..
दुनिया को अलविदा रे..
जीते जी कोई नहीं पूछता..
मरने के बाद तो..
कोई मेरी सुनेगा रे..