iss weekand pe ek new poem from my heart....for everybody whoose khoye khoye se rehte hai....dube dube se rehte hai....



कोई खामोशी,
दिल को खाए जा रही हैं,
कोई बैचैनी,
दिल को छुए जा रही हैं,
कुछ तो बात जरुर हैं,
आजकल के फसानो में,
की खोया खोया सा रहता हूँ,
डूबा डूबा सा रहता हूँ....

लहरों की तरह,
हम भी बहा करते थे,

परिंदों की तरह,
हम उड़ाने भरा करते थे,
न जाने कैसे यह समां थमा हैं,
की खोया खोया सा रहता हूँ,
डूबा डूबा सा रहता हूँ....

ज़िन्दगी के जोश में,
कभी हम भी जीया करते थे,
खुशियों की आस में,
कभी हम भी इंतज़ार किया करते थे,
आजकल कुछ इस तरह बना हुआ हैं,
दिल का आलम,
की खोया खोया सा रहता हूँ,
डूबा डूबा सा रहता हूँ....

वो भी क्या दिन थे,
जो रोने की आवाज के साथ,
शुरू हुआ करते थे,
वो दिन भी क्या मस्त थे,
जब हर चीज़ के लिए,
जीद किया करते थे,
अब ना जीद रही ना रोना,
ज़िन्दगी कुछ इस तरह,
बन गयी हैं एक बेजान खिलौना,
की खोया खोया सा रहता हूँ,
डूबा डूबा सा रहता हूँ....